सांझ सबेरे
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सांझ सबेरे बचपन की वो यादें आती हैं।
मन को बोझिल कर देती दिल को तड़पाती हैं।।
बीत गए वो दिन पर कितने अच्छे लगते थे।
तन मन में खुशियां रहती मिल जुल कर रहते थे।।
बीते दिनों को याद करो तो बात पुरानी लगती है।
पैसों की तो कमी बहुत थी प्रेम दिवानी लगती है।।
तन ढकने को वस्त्र नहीं थे फिर भी बदन सुरक्षित था।
एक छोटी सी कुटिया में पूरा परिवार ही रहता था।।
मेहमान अगर कोई आ जाए तो प्रेम से उसे खिलाते थे।
उस छोटी सी कुटिया में उसको भी वहीं सुलाते थे।।
सत्कार प्रेम से करते थे चाहे जितने दिन रह जाए।
घंर, परिवार या गांव,शहर का कोई भी परिचित आ जाए।।
गांव का हर एक बुजुर्ग दादा, चाचा कहलाता था।
प्रतिदिन उन्हें नमन करते सबसे गहरा एक नाता था।।
दु:आ दर्द किसी के होने हरदम मदद किया करते।
विपदा कोई भारी आ जाती तो हरदम साथ खड़े रहते।।
बचपन की यदि हम याद करें घर में नहीं खिलौने थे।
फिर भी कितनी मस्ती थी सब बाल सखा एक छौने थे।।
Abhinav ji
25-Apr-2023 08:47 AM
Very nice 👍
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
25-Apr-2023 07:49 AM
बहुत ही सुंदर और सजीव अभिव्यक्ति पुराने समय की
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ऋषभ दिव्येन्द्र
24-Apr-2023 01:28 PM
बहुत खूब 👏👏👌👌
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